भारत के पश्चिमी तट पर बसे गोवा में 55वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव की शुरुआत से पहले लिखे गए एक संपादकीय में अश्विनी वैष्णव ने भारतीय अर्थव्यवस्था में रचनात्मक काम करने वालों के योगदान के बारे में लिखा. उन्होंने कहा कि भारतीय क्रिएटर सिर्फ़ एक कथावाचक, यानी कहानियां सुनाने वाले से राष्ट्र-निर्माण करने वाले तक विकसित हो गए हैं.