नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को चेताया और कहा कि आपके अधिकारी दबाव में आ सकते हैं लेकिन न्यायिक अधिकारी नहीं. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि राज्य के अधिकारी "दबाव में" हो सकते हैं,लेकिन न्यायपालिका नहीं.दरअसल महाराष्ट्र सरकार ने माथेरान में ई-रिक्शा लाइसेंस आवंटन पर न्यायिक अधिकारी की रिपोर्ट की सत्यता पर सवाल उठाया था,जिस पर जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि आपके अधिकारी दबाव में हो सकते हैं,लेकिन हमारी न्यायपालिका नहीं.
यह मामला माथेरान (मुंबई से लगभग 83 किलोमीटर दूर) एक हिल स्टेशन का है,जहां ऑटोमोबाइल की अनुमति नहीं है.सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2024 में आदेश दिया था कि ई-रिक्शा केवल उन हाथ-रिक्शा चालकों को दिए जाएंगे,जो अपनी आजीविका खो चुके हैं. अप्रैल 2024 में,कोर्ट ने आदेश दिया कि माथेरान में ई-रिक्शा की संख्या 20 तक सीमित रहेगी.
इसी के साथ SC ने महाराष्ट्र राज्य को पैदल चलने वाले पहाड़ी शहर माथेरान में मूल हाथ-ठेला चालकों को 20 ई-रिक्शा लाइसेंस आवंटित करने की प्रक्रिया पर पुनर्विचार करने के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया.
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ पहाड़ी शहर में एक पायलट ई-रिक्शा परियोजना से संबंधित मुद्दों पर विचार कर रही थी. महाराष्ट्र के वकील द्वारा प्रस्तुत किए जाने के बाद कि राज्य के लिए आवंटन प्रक्रिया को नए सिरे से शुरू करना उचित होगा,इसने यह आदेश पारित किया.
जस्टिस गवई ने कहा कि ई-रिक्शा के आवंटन की प्रक्रिया पर पुनर्विचार करने के लिए राज्य सरकार को दो सप्ताह का समय दिया जाता है. विशेष रूप से रिक्शा चालकों के लिए वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने सुनवाई के दौरान कहा कि लाइसेंस आवंटन पर प्रमुख जिला न्यायाधीश,रायगढ़ द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट "पूरी तरह से त्रुटिपूर्ण" है,जो सामग्री की सही सराहना पर आधारित नहीं है.
जज या राज्य द्वारा इसे फिर से तैयार करने की आवश्यकता हो सकती है. लेकिन पीठ ने कहा,- हन प्रस्तुति को स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं क्योंकि रिपोर्ट एक जिम्मेदार,वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी द्वारा तैयार की गई है. जस्टिस गवई ने कामत से मौखिक रूप से कहा,मैं उस अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं,इसलिए कोई संदेह न करें.
एक बिंदु पर,यहां तक कि महाराष्ट्र के वकील ने भी प्रस्तुत किया कि जिला न्यायाधीश की रिपोर्ट पूरी तरह से तथ्यात्मक रूप से सही नहीं हो सकती है,जिसका जवाब देते हुए जस्टिस गवई ने कहा,कि ऐसा मत कहिए.. आपके अधिकारी दबाव में हो सकते हैं,हमारी न्यायपालिका नहीं.