पाकिस्तान में फौज को लेकर कहा जाता है कि 'लेक्शन कोई हारया नई और जंग कोई जित्ती नी.'
नई दिल्ली :
ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने पाकिस्तान को बता दिया है कि भारतीय सेना के पराक्रम से टकराना उसके बस की बात नहीं है. पाकिस्तान के बड़बोले सेना प्रमुख आसिम मुनीर भारत की कार्रवाई के बाद से ही डरे-डरे से हैं. हमेशा से पीछे से वार करने वाली पाकिस्तानी सेना के प्रमुख से इससे ज्यादा और क्या उम्मीद रखी जा सकती है. हालांकि पाकिस्तानी सेना की कार्य प्रणाली को देखा जाए तो यह वो सेना है जो सरहद की हिफाजत करने और जंग लड़ने के सिवाय सारे काम कर सकती है. वो नाके पर आती-जाती गाड़ियों से पैसे वसूल कर सकती है,सिनेमाघर चला सकती है,मॉल्स बना सकती है,प्लॉटों की खरीद-बिक्री भी कर सकती है. पाकिस्तानी सैनिक और अफसर जमकर पैसे कमाते हैं और फिर रिटायर होकर विदेशों में चल जाते हैं. मुनीर से पहले के पाकिस्तान के 3 जनरल रिटायर होने के बाद देश में नहीं रुके.
अशफाक परवेज कयानी ऑस्ट्रेलिया में कहीं रहते हैं,राहिल शरीफ सऊदी अरब में हैं और कमर जावेद बाजवा फ्रांस या बेल्जियम में रहते हैं. मुनीर के बारे में भी यही माना जाता है कि वो भी रिटायर होने के बाद भाग जाएंगे,लेकिन फिलहाल तो उनके सामने नौकरी पूरी करने का ही संकट खड़ा हो गया है. हालांकि उन्होंने भी वही सब किया है पाकिस्तानी सेना अब तक करती रही है.
तमगे मिले,लेकिन किस बात के?
हाल ही में एक तस्वीर सामने आई है. हालांकि काफी समय पहले जारी हुई थी और दूसरी तस्वीरों की ही तरह की लग रही है. इसमें पाकिस्तान की सेना के प्रमुख आसिम मुनीर भी दिख रहे हैं,जिनको देश ने पहलगाम हमलों के बाद से नहीं देखा था. बार-बार उनका वही फोटो सामने आती है,जिसमें उनकी वर्दीतरह-तरह के तमगों से सजी हुई है. वैसे उनको जो तमगे मिले हैं उनमें कुछ अहम हैं.
निशान-ए-इम्तियाज(2022)हिलाल-ए-इम्तियाज (2018)तमगा ए दिफातमगा ए बका (1998)तमगा ए इस्तकलाल पाकिस्तान (2002)तमगा एआजम (2018)जम्हूरियत तमगा (1988)करारदाद-ए-पाकिस्तान तमगा (1990)तमगा-ए-सालगिरह पाकिस्तान (1997)
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पाकिस्तान बनने के बाद पहले ही दिन से पाकिस्तान की सेना का सत्ता में काफी दखल रहा है. दो बार सेना प्रमुखों जनरल जिया उल हक और जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने सत्ता पूरी तरह से अपने हाथ में ले ली थी. जनरल बाजवा के वक्त भी लगा था कि तख्ता पलट होने वाला है और आसिम मुनीर के भी मंसूबे कुछ ऐसे ही लग रहे थे. शायद इसीलिए पाकिस्तान में
फौज को लेकर कहा जाता है कि 'लेक्शन कोई हारया नई और जंग कोई जित्ती नी.'